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कविता रिसती है हृदय से ,
और खामोशी से कंठ में आती है,
खाट लगाकर कुछ देर वही ठहर जाती है।
कविता रिसती है हृदय से ,
और कांपते हाथों में आती है ,
साहस से हीन होकर वहीं खो जाती है ।
कविता नृत्य करती है मौन में ,
शोर में सहम जाती है ,
एकान्त कक्ष के कोने में ,
स्वयं को स्वतंत्र पाती है।
कविता बहती है कलम से ,
या कभी किसीके रक्त से।
कविता प्रत्येक क्षण को ,
नया प्रारूप देती है ।
युवा की क्रोधानल , प्रेमी का पारिजात होती है,
कविता व्यथित मन की मझधार होती है ।
कविता रिसती है हृदय से ,
संघर्ष करती है।
शब्दों को संजो कर , बात विस्तार करती है ,
कविता स्त्री भावना का रूप साकार होती है ।
- ऋषिता
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