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किसी रोज तुम आना तो ऐसे ,
जैसे बरसों से तरसते रेगिस्तान पर बारिश का मेहर आया हो ।
जैसे घंटों के तूफान के बाद सुकून आया है ।
जैसे मझधार में फैले नाविक को बचाने पतवार आया है ।
जैसे शिला बनी अहिल्या का राम आया है ।
जैसे यशोधरा की प्रतीक्षा के अंत में स्वयं सजीव ज्ञान आया है।
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