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*जिंदगी*

उलझनों से पूछ लो
किस राह ठहरी जिंदगी
किस गली में शोर है
किसने कितनी समझी जिंदगी।

मान लो उन्माद है
मिलता कहां स्वाद है
कसौटियों में परखते हैं
आँच खाती जिंदगी।

जब मिलो तो पूछना
कितना निखर पाई है
तालियों के शोर में
बस बिखर रही है जिंदगी।

नमी की इक बून्द भी
देख नजर आती नहीं 
कितना मेकअप चेहरे पर
लिए घूमती है जिं

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