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मेरी नज़्में इतराया करती हैं।

Rhythm SharmaRhythm Sharma February 9, 2023
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नहीं समझ आए तो, मेरी नज़्मों को मत पढ़ा करों तुम।

रूठ जाया करती हैं मुझसे।

दूर क्यारी में जाकर बैठ जाया करती हैं।

जब पूछता हूँ उससे,

क्या हुआ, क्यों बैठी है तल्ख़ मुझसे मुँह फेरे?

तो सदा सुनाई देती है, उसके होंठों से।

कहती है, तेरे हबिब ने छू लिया मुझ को।

और तो, लबों पर रख एक कहानी की तरह पढ़ लिया मुझ को।

समझ में न आई मैं, तो अधूरा छोड़ दिया।

हाँ! और वो मानी बिगाड़ दिए हैं मेरे।


बहुत मुश्किल होता है, इन नज़्मों को समझाना।

तिलिस्म-ए-गुफ़्तगू से लोगों को तो काबू में कर लेता हूँ,

पर ये नज़्में हैं की मेरे हाथों में ही नहीं आती,

शायद पर लग चुके हैं इन्हें।

दूसरो की शिकायत करती हैं मुझसे,

पर खुद पर कभी गौर नहीं किया करती,


पर जब मैं पढ़ा करता हूँ इन नज़्मों को,

तो इनके मानी संभाल लिया करता हूँ,

पर बहुत नाटक किया करती हैं ये।

शायद मेरी वजह से ही ये इतनी बातें बनाया करती हैं।

हाँ, मेरी वजह से ही इतराया करती हैं।

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