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मैं तो चला था वफ़ा करने,
वो मुझसे मुहब्बत कर बैठा।
इसका मतलब ये नहीं की दिल दे दूँ उस को,
न जाने शिकस्ता-दिल से क्यों इश्क़ कर बैठा।
तर्ज़,अंदाज़, बातें क्या पसंद आया उसको,
बिन जान-पहचान के उल्फ़त कर बैठा।
दुनिया ने कितनी बार आगह किया, नुसरत भी देना चाही,
मैं सब तग़ाफ़ुल करता रहा और ये कब सफ़्फ़ाक बन बैठा।
तअल्लुक सिर्फ रिफ़ाक़त का था उस से,
इल्म न मिला मुझे कब मैं उसकी दरकार बन बैठा।
तमसील, अहबाब, रफ़िक़ माना था उसको,
न जाने ये मेरा कब शौदाई बन बैठा।
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