
कितना समय लगा मुझे तुम तक पहुंचने में?
तुम्हें समझने में भी कितने माह निकले हैं,
शायद दो माह लगे हैं।
लम्हें गुजारे हैं,
तेरे दिल में इस सोदाई की जगह बनाने के लिए।
और कुछ दिन का रिश्ता बसर हुआ है,
एक-दुसरे में उतरने के लिए।
यूँ मिला हूँ तुमसे, गोया आफ़ताब को उफ़ुक़ मिल गया हो,
उफ़ुक़ को ढूंढने में भी कुछ अरसे गुजारे हैं मेरे।
बातें यूँ ही चालू नहीं हो सकती,
वफ़ा-ओ-बावर किए है मैंने,
कितना समय लगा मुझे तुम तक पहुंचने में,
खैर मैंने तो बयाँ कर दिया।
जरा तुम भी तो बतलाओ,
कितना समय लगा है तुम्हें, मुझे तोड़ने में?
और कितना वक्त लगा है एक रिश्ते को अलग होने में?
शायद एक शाम में ही टूट गया था।
मैं और वो रिश्ता।
लर्ज़िश करने लगा था,
फिर से थोड़ा समय लग है मुझे,
खुद का तवाज़ुन संभालने में।
यूँ ही तीन माह गुजरे हैं, फिर से ऐतबार करने में,
अब जाकर कहीं मैं शिकवे भूला हूँ,
हमारा रिश्ता भूला हूँ।
गिरा हूँ, टूटा हूँ,
टूट कर फिर जुड़ा हूँ,
जुड़ कर खड़ा हुआ हूँ,
वहीं पर जहां में पाँच माह पहले था।
इतना समय लगा है मूझेहाँ, बस इतना ही समय लगा है।
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