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राग संग अनुराग होगा
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मन विकल विचलीत बड़ा हैं
साख ज्यू तरु बिन खड़ा हैं
आया है मधुमास सज के
मूक खड़ा हैं हर्ष तज के
हैं कुसूम रंगो से शोभित
पर महक लगे ज्यु आरोपित
जो बसंती तान बहकी
आसुओं के संग लहकी
न लुभाए अबकी फागुन
नेह से नेहिल कोई गुण
रंगो में न वो खनक हैं
आँखो
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