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मुल्कों को चाहिए ज़मीं का विस्तार
होती है तो हो जाए मानवता शिकार
फिर चाहे हो बे-इंतिहा दहशत हर-सू
या कि बहता रहे बे-क़ुसूरों का ख़ूँ
लड़ेंगे शिद्दत से ज़िद की लड़ाई
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मुल्कों को चाहिए ज़मीं का विस्तार
होती है तो हो जाए मानवता शिकार
फिर चाहे हो बे-इंतिहा दहशत हर-सू
या कि बहता रहे बे-क़ुसूरों का ख़ूँ
लड़ेंगे शिद्दत से ज़िद की लड़ाई
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