विकास की बहती बयार !'s image
Poetry2 min read

विकास की बहती बयार !

AbhishekAbhishek February 16, 2022
Share0 Bookmarks 29 Reads0 Likes

अमृत महोत्सव का जश्न ! 

पर, अनुत्तरित कई प्रश्न 

बातें सब लगती बे-मतलब

हालात कुछ ऐसे हों जब .... 


बढ़ती बेरोज़गारी

रसोई गैस हज़ारी

ईंधन जेब पर भारी

सड़कों पे युवा जवान

आत्महत्या करते किसान

महँगाई नित बे-क़ाबू

भ्रष्ट लुटेरे कारोबारी बाबू

लंबित मामलों की फ़ेहरिस्त

विदेशी कर्ज़ों की जाती किस्त

हड़ताल की धमकियाँ

सदन में टूटती कुर्सियाँ

नेताओं के झूठे आश्वासन

सभाओं में स्तरहीन भाषण

अत्यंत संवेदनहीन विपक्ष

पत्रकारिता नहीं निष्पक्ष


सबसे बड़े लोकतंत्र की, 

प्रत्यक्ष हुई हक़ीक़त सारी I

क़हर बन कर जब आई, 

अज़ाब जैसी महामारी I

हर तरफ दिखी लाचारी

दवाओं की काला बाज़ारी

प्राण-वायु की मारा मारी

कृत्रिम यंत्रों पर अटकी

बेबस थीं ज़िंदगियाँ बेचारी


इसलिए,

करना होगा संकल्प

लेनी होगी शपथ

कि संसाधनों की कमी

किसी की मौत का,

ना बने सबब


चाहे कोई भी सरकार

जनता मरने को तैयार

मिलता है इन्हें फ़क़त

घोषणाओं के बस्ते में

वार्षिक बजट का उपहार


इसको ही तो कहते हैं

विकास की बहती बयार !


      - अभिषेक


No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts