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कोमल सी शबनम सुबह की
शाम की घटा घनघोर हो तुम
काली रैन का माहताबी आग़ोश
मीठे बोसे वाली भोर हो तुम
नींद से जगाने वाली
पुरवाई की शोर हो तुम
जज़्बातों को बाँधे जो
मजबूत वो डोर हो तुम
मेरे प्रेम धागे का प्रिय
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