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कल सफ़र में हुआ था जो
उस एहसास को क्या नाम दूँ
आग़ाज़ किसी दास्ताँ की
कि अंजाम-ए-तसव्वुर कहूँ
बेनाम सा एक शख़्स
अदाएं भी लाजवाब
हँसती है गोया शबनम
रूठे अगर तो आफ़्ताब
राह-ए-हयात में कभी
सामने वो आएगी जब
पूछूँगा, दिल पे मेरे
यूँ दस्तक देने का
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