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जंग नहीं देता परिणाम
तारीख़ देती ये पैग़ाम
छोड़ो ज़िद का संग्राम
होता नहीं सही अंजाम
तोप, बम, गोले बारूद ने
कई दफ़ा मचाया कोहराम
नफ़रत की आग से जली हैं
सड़कें, गलियाँ, घर तमाम
ज़ुल्म के ज़हरीले धुएँ में
घुटती रही हैं ज़िंदगियाँ
चीखती रही इंसानियत
मरती रही मजबूर अवाम
फेंक दो सारे हथियार
मिटा दो मन के द्वेष ग़ुबार
हर मुल्क वतन रहे गुलज़ार
कायम करो ऐसा संसार
बे-ख़ौफ़ गुज़रें रातें सबकी
अमन भरी हो सुबह शाम
- अभिषेक
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