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कभी जन्नत हुई थीं जो गलियाँ

तेरे क़दमों को छू कर

वीरां सी अब हर तरफ नज़र आती हैं

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देते अगर जो साथ सफ़र में

तुम हम-सफ़र बन जाते

देखा जो होता निगाहों में मेरी

तो हम लब ही ना हिलाते

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वो एक अरसे से ख़फ़ा हैं

ज़रा सी बात पर

शायद वो जानते नहीं

थोड़ी नोक-झोंक

हमारे रिश्ते का नमक है

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