राजनीति का स्तर इस कदर गिर चुका है कि परस्पर विरोध में नेताओं द्वारा ऐसी ऐसी बातों का ज़िक्र किया जाता है (खास कर चुनाव के दौरान) जो निरर्थक, अनुचित एवं आधारहीन होते हैं I निःसंदेह ऐसे कथन असंसदीय भाषा, अप्रासंगिक तथ्यों और बयानों की पराकाष्ठा है I अन्य जन-प्रतिनिधियों की बात क्या की जाए, जब देश के प्रधान ही अपने पद की गरिमा का ध्यान नहीं रख रहे I
किसी राजनीतिक दल के चुनाव चिन्ह को, देश में दहशतगर्दों द्वारा की गई गतिविधियों से अनावश्यक रूप से संबद्ध कर देना किस नज़रिए से सही कहा जा सकता है I
सभी जानते हैं कि चुनाव चिन्ह तय करके उसे किसी राजनीतिक दल को देना यह विशिष्ट रूप से चुनाव आयोग का दायित्व होता है, तो फिर किसी दल पर उसके चिन्ह को लेकर कटाक्ष करना कहाँ तक उचित है ?
क्या शिक्षित, प्रतिष्ठित एवं माननीय को ये नहीं पता है कि साइकिल हमारे दैनिक जीवन
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