
बेताब हो जाएँ जब
काग़ज़ों पे उतरने के लिए
ख़ुद-ब-ख़ुद अल्फ़ाज़
क़लम का नहीं क़ुसूर
छा जाए ज़ेहन में जब
कुछ लिखने का जुनून
निःसंदेह फिर तो
लिखना चाहिए ज़रूर
हुए ऐसे ऐसे लिखने के दीवाने
लिख गए प्रेम के कई अफ़्साने,
सदाबहार यादगार मधुर गाने,
साहित्यिक गौहरों के ख़ज़ाने I
क़लम की जादूगरी दिखा गए,
हर विधा के धुरंधर जाने माने II
क्या क्या नहीं कर सकती है !
छोटी सी एक बेबाक क़लम I
सोई सरकारों को जगा देती है
क्रांति की मशाल जला देती है
साहस रग-रग में भर देती है,
सुना कर गाथाएँ वीर शहीदों की I
महज़ लफ़्ज़ों से दिखा देती है,
वीरांगनाओं का जीवंत पराक्रम II
खुद स्याह रंग में डूब डूब कर,
कई कृतियों को कर देती स्वर्णिम II
इसलिए लिखने की आदत से,
अक्सर रहिए मजबूर I
क्यूँकि लिखते रहना,
है एक बढ़िया फ़ितूर II
लिखने का निभाइए दस्तूर
एक बार क़लम तो उठाइए हुज़ूर
- अभिषेक
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments