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कौन कहता है कि सीमाएँ इनकी
बस घर-आँगन की चार-दीवारी
जान चुकी है दुनिया ये सारी
कितने आयाम छू सकती है नारी
हर-सू लहराया परचम, बाज़ी मारी
छात्रों पर पड़ती हैं छात्राएँ भारी
कई परीक्षाओं में आती हैं अव्वल
आकाश भर नित सफल है नारी
कर्तव्य निर्वहन में कभी ना हारी
ना फ़क़त परिवार की जिम्मेदारी
सुबह से शाम, घर-बाहर सब काम
अथक सहज कर लेती है नारी
किस क्षेत्र में नहीं है भागीदारी ?
"प्रतिभा", "द्रौपदी" महामहिम हमारी
पुरुषों का दायित्व नहीं है,
नर की वास्तविक गरिमा है नारी
त्याग समर्पण की मूरत प्यारी
धरा सी सक्षम तो कभी सुकुमारी
जीवंत संघर्ष की छवि निराली
काव्य और पावन ग्रंथ है नारी
न सिर्फ शिव-शंकर की गौरी प्यारी
विष्णुप्रिया लक्ष्मी, कर वीणा धारी
प्रत्येक रूप में पूजनीय है शक्ति
सकल संपूर्णता का नाम है नारी
- अभिषेक
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