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यही कैफ़ियत रही तो, दिन वो दूर नहीं
हर हाथ में होगा जब, कोई हथियार
नफ़रत की फ़ज़ा होगी
ज़ुल्म का फ़लक होगा
शादाब मंज़र का, न होगा दीदार
अकारण कर देगा वार, कोई किसी पे
हर शख़्स ही कहलाएगा गुनाहगार
हो जाएगी मुश्किल तय करने में
शिकारी है कौन, और कौन शिकार
इक तरफ़ ख़ाक हो रहा होगा नशेमन
दूजे जानिब दिखेंगे तमाशाई हज़ार
काएनात लगेगी गोया रुदाली
ज़ार-ज़ार यूँ करेगी चित्कार
- अभिषेक
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