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बे-मुरव्वत था वो लम्हा
किया जिसने यूँ मजबूर
कि कमरे का दायरा भी
लगता है अब काफ़ी दूर
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ज़ख़्मों का इम्तिहान है
दर्दनाक हैं प्रश्न तमाम
हौसलों से उत्तर दिया है
आएगा सुखद परिणाम
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लड़ूँगा इस कैफ़ियत से
हौसला हारना नहीं मंज़ूर
सहूँगा हर तकलीफ़ मैं
जीतूँगा दर्द से जंग ज़रूर
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उस रोज़ के हादसे से,
नहीं हुआ फ़क़त,
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