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शायद हादसों से,
मेरी आश्नाई है I
हर मोड़ पर,
मुक़द्दर ने ठोकर खाई है II
था यक़ीं जिस पे,
साथ देगा मेरा I
उस ने ही,
तोहमत लगाई है II
जाऊँ कहाँ ?
बैठूँ रू-ब-रू किसके ?
कि अब तो,
हर अंजुमन में रु
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