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ज़िंदगी की रेल पर
हो गए हो जब सवार
फिर तो होना ही है
ग़म की भीड़ से दो-चार
ख़ुशियों के डब्बे में बैठो
उम्मीदों के झरोखे खोलो
ग़ैर को बना लो आश्ना
सफ़र रहेगा यादगार
हाँ, बेशक़ आएंगे रास्ते में
कई दुःखों के पड़ाव, पर
सुखों के जंक्शन भी हैं
बस थोड़ा सब्र, थोड़ा इंतिज़ार
धूप के कई प्लेटफॉर्म से हो कर
करके छाँव की सुरंगों को पार
पहुँचेगी जब जीवन की गाड़ी
अपने अंतिम ठहराव,
न होगी जल्दबाज़ी किसी को
उतरने की वहाँ
और न आरज़ू कि
कदम पड़े
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