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परदेस की सरहद छोड़

लौटने को, घर-आँगन

मन करने लगता छटपट


गलियाँ, सड़कें भी जैसे

करतीं हों इंतज़ार, सुनने को

पहचाने कदमों की आहट


बरसों दूर रहने वाले

बेटे-बेटियों की, 

राहें निहारतीं द्वार-चौखट


आस लगाए रहती हैं माएँ

हो कब, 

दरवाजे़ पे खट-खट


दीपोत्सव के बाद

आता है जब, 

आस्था का महापर्व "छठ"


सूर्य उपासना, तन-मन से

करते सभी श्रद्धालु भक्त

युवा, वृद्ध, बच्चे नटखट


अप्रतिम मनोरम लगते हैं

रंगबिरंगी आभा में, 

जगमगाते घाट, पोखर-तट


उल्लास-उमंग से समापन पर

मिलता है

ठेकुआ का प्रसाद झटपट


      - अभिषेक


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