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देख कर सड़क पे
बुज़ुर्ग दंपत्ति को
तन्हा बेबस लाचार बेहाल
सोचने लगा मैं
क्यूँ लेते हैं जन्म ?
ऐसे बेशर्म "लाल" !
करते नहीं जो बुढ़ापे में
माँ-बाप की देखभाल
पास उनके चला गया मैं
बह रही थीं बूढ़ी अँखियाँ
मद्धम स्वर में जो बतलाया
सुन कर मेरा दिल भर आया
कहा..बेटों ने बहुत सताया
जिस घर को हमने बनाया
उसमें एक कोना दिखलाया
जिस चौखट को पूजते थे
उस दहलीज़ से दूर भगाया
बीमार हुए तपता था बदन
किसी का पिघला ना मन
इतनी सी थी मन में आस
कुछ पल बच्चे बैठें पास
बेबस थे हम दोनों लेकिन
कोई भी आया ना क़रीब
औलाद वाले माँ-बाप का
क्या होता है ऐसा नसीब !
ज़ालिम संतानें भूल गईं
माता के आँचल में दूध पिया
पिता की गोद में मल-मूत्र किया
ढलने लगी जब हमारी काया
और सेवा का अवसर आया
"सुपुत्रों" ने क्या धर्म निभाया !
जन्म देने वालों को ठुकराया
- अभिषेक
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