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बयाँ करना चाहता है कुछ ये मायूस दिल मगर,
मसला ये है दिन के उजाले में कुछ कह नही पाता।
हैरत है के तुम्हारे बिना तो रहना सीख गया हूं मैं,
हैरान हूं के दर्द-ए-ला-दवा के बगैर मैं रह नही पाता।
उसकी बेवफाई को तो सहन कर सकता हूं मैं ग़ालिबन,
एक उसके अहद-ए-वफ़ा के फरेबी अन्दाज़ को मैं सह नही पाता।
करना चाहता हूं कुछ ऐसा जो रहे उसे तमाम उम्र याद,
मेरी कमज़
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