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देर रात को फ़ोन कर अब किसे सताती हो,
अब कौन तुमसे रूठता है, तुम किसे मनाती हो?
एक मैं ही तो था जो समझ जाता था,
अब मुझसे जुदा होकर तुम किसे समझाती हो?
अब कौन तुमसे रूठता है, तुम किसे मनाती हो?
दिन की शुरुवात होती थी तुम्हारी बातों से,
हमारा वास्ता भी हुआ करता था इन शामों से इन रातों से।
अब दिन की हर छोटी-बड़ी बात तुम किसे बताती हो,
अब कौन तुमसे रूठता है, तुम किसे मनाती हो?
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