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ये नया दौर है रावण का,
आने फिर से राम हैं बाकी।
सच रोज रसातल में धंसता है,
और पूजी जाती है चालांकी।
अब सबरी जाती दुत्कारी है,
आज रहती पत्थर सी नारी है।
केवट राह जोहता रहता है,
और बेईमानी बस है बेबाकी।
ये नया दौर है रावण का....
अब भाई भाई का ही दुश्मन है,
और माँ बाप का बसेरा बन है।
अब घर घर में मंथरा रहती है,
और टूटनिति बस बनी है लाठी।
ये नया दौर है रावण का.....
पी संजीवनी मेघनाद उठ जाता है,
और बिभीषन बेचारा मारा जाता है।
धर्म रोज धरातल में धंसता है,
और अधर्म की सजती है झांकी।
ये नया दौर है रावण का.....
अब सब रावण दल में जा बैठे हैं,
भ्रमित मायाजाल महल में बैठे हैं।
स्वार्थ स्वार्थ और स्वार्थ चलता है,
परमार्थ जैसी कोई नही है थाती।
ये नया दौर है रावण का.....
- रविन्द्र राजदार
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