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लगता है कोई भूप हों

Ravindra RajdarRavindra Rajdar October 1, 2021
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जहाँ जाड़े की नरम धुप हो , 

थोड़े से भी न मशरूफ हों।

बैठे रहें दालान में चाय संग,

ऐसे लगता है कोई भूप हों। 


जहाँ भार्या फटकती सूप हो, 

मेरी माँ ही खोलती संदूक हो। 

बैठे रहें दालान में रेडिओ संग, 

ऐसे लगता है कोई भूप हों। 


जहाँ बच्चे भी खेलते खूब हों,

और भाई बहन की कौतुक हो। 

बैठे रहें दालान में किताबों संग,

ऐसे लगता है कोई भूप हों। 


जहाँ बैठें पिता प्रभु रूप हों, 

फूल हों और वहां मधुप हों।

बैठे रहें दालान में फूलों संग,

ऐसे लगता है कोई भूप हों। 


- रविन्द्र राजदार 


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