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प्रभु का अनन्य भक्त बड़े ही ध्यान से मंदिर के ऊपर लगे झंडे की ओर देख रहा था।
काफी देर तक देखता रहा।
उसकी इतनी ज्यादा श्रद्धा और भक्ति देख प्रभु बड़े प्रसन्न हुए और स्वयं धरती पर आकर अपने अनन्य भक्त से मिलने का निश्चय किया।
प्रभु आये , भक्त अभी भी वही था।
भगवान उसकी ओर बढ़े और कंधे पर हाथ रखकर पूछा : क्या देख रहे हो भक्त?
लो मैं स्वयं आ गया, अब मेरे संगत मे आ जाओ।
भक्त झल्लाकर बोला : चुप रे, भगवान के काम में बाधा न डाल।
प्रभु सन्न, काटो तो खून नही,
समझ ही नही पाए की उनसे बड़ा ये वाद्ययंत्र कैसे हो गया।
प्रभु डरे की उनसे बड़ा उनका नाम होता है, ये तो सुना था, पर एक वाद्ययंत्र।
प्रभु वेश बदलकर आसपास के लोगो से पूछने लगे।
लोगो ने बताया वो कोई मामूली यंत्र नही है, वो लाउडस्पीकर है, आजकल वही सबसे बड़ा है।
प्रभु निरुत्तर थे, करते भी क्या ?
सोचने लगे, शरीर बनाया, उसके ऊपर खोपड़ी बनाई, खोपड़ी में दिमाग डाला और उसका ये इस्तेमाल।
आज इंसान ने बनाने वाले से ही बड़ा बना दिया।
मंजिल से बड़ा मार्ग हो गया।
इंसान से बड़ा भगवान हो गया।
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