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नदी समंदर से मिल गई।
ज़मीं आसमां से मिल गई।।
मेरी घड़ी मुझ से रूठती चली गई।
जैसे नैया मेरी मजधार में ही रुक गई।।
सब को अपनी मुहब्बत मिल गई।
पर ज़िंदगी मेरी इंतज़ार में ही गुज़र गई।।
-रवि नकुम (ख़ामोशी)
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