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अब बचा ही क्या है
इस जहां में
मैं मेरी तन्हाई और ये ख़ामोशी
जो छूटना था
वो सब कब का छूट गया मेरे पीछे
जो संभाला हुवा था
मैने अपने इन हाथों में
वो सब भी फिसलता गया
कोरी रेत के जैसे
अब
इस जहां में
मैं मेरी तन्हाई और ये ख़ामोशी
जो छूटना था
वो सब कब का छूट गया मेरे पीछे
जो संभाला हुवा था
मैने अपने इन हाथों में
वो सब भी फिसलता गया
कोरी रेत के जैसे
अब
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