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सुनकर उनकी आवाज़ को , इन आँखों ने एक तश्वीर बनाई थी।
होगा नोज़बां हैंडसम सा कोई , यही कल्पना मेरे मन में समाई थी।।
आज दीदार हुआ ज्यों ही उनके चेहरे का तो सच सामने आया
तब पता चला कि ये भ्रांति तो साले इस दिमाग ने फैलाई थी।।
~रवि कान्त कुड़ेरिया
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