ग़ज़ल's image
Share0 Bookmarks 151 Reads0 Likes

क्यूँ खुले मुँह सब खड़े हैं शिष्य ग़ालिब मीर के

सुन लिए क्या बोल सबने मसखरे की पीर के


आँसुओं को अब बहाने से भला क्या फ़ायदा

नीर से कैसे धुलेंगे....दाग हैं जो नीर के


चूमते हैं गाल को पर सोचता हूं काट लूँ,

गाल ऐसे सुर्ख़ जैसे सेब हों कश्मीर के


चार दिन की चाँदनी फ़िर काली काली रात है

चार दिन तो देदो मुझको...हैं मेरी तकदीर के


राम जी के भक्त तो सब लोग ही हैं...यार पर

एक बस हनुमान ने सीना दिखाया चीर के


-रवि गोस्वामी-

No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts