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क्यूँ खुले मुँह सब खड़े हैं शिष्य ग़ालिब मीर के
सुन लिए क्या बोल सबने मसखरे की पीर के
आँसुओं को अब बहाने से भला क्या फ़ायदा
नीर से कैसे धुलेंगे....दाग हैं जो नीर के
चूमते हैं गाल को पर सोचता हूं काट लूँ,
गाल ऐसे सुर्ख़ जैसे सेब हों कश्मीर के
चार दिन की चाँदनी फ़िर काली काली रात है
चार दिन तो देदो मुझको...हैं मेरी तकदीर के
राम जी के भक्त तो सब लोग ही हैं...यार पर
एक बस हनुमान ने सीना दिखाया चीर के
-रवि गोस्वामी-
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