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नदी के बिरह
और पहाड़ के एकाकीपन से
कौन वाक़िफ़ है ?
नदी किसके वियोग में
बहती चली जाती है ?
पहाड़ इतने निर्जन में
क्यों अकेले खड़ा है !
क्या उसे किसी का इंतज़ार है?
हां,
उसका अंतहीन इंतज़ार ही
उसकी ऊंचाई और सुंदरता है
जिस दिन ख़त्म हुआ
उस दिन पहाड़ टूट जाएगा
नदी का विरह जिस दिन ख़त्म हुआ
उस दिन वह सूख जाएगी
-रत्नेश मिश्र
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