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सब कुछ सफर में ही तो है
शब्दों से गहन 'मौन'
प्रकृति से गहन 'प्रेम'
कुछ भी तो स्थायी नहीं है
प्रेम के अतिरिक्त....
ना ये मिट्टी का लिहाफ...
ना अहंकारी लिहाज़...
फिर भी हैरान है..मनुष्य
फिर भी डरता है...मनुष्य
वह ज
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