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वर्षा का प्रेम है प्रकृति से,
मनुष्य से नहीं,
मनुष्य को घमंड है
वह उसके लिए बरसती है,
पर वह तो बरसती है पेड़-पौधो के लिए,
वह बरसती है नदी और तालाबों के लिए,
वर्षा का प्रेम है, जंगल से,
मनुष्य से नहीं,
जंगल का प्रेम उसे खींच लाती है,
उसकी मदमस्त सुंदरता उसे बहुत भाती है
मत काटो, जंगल, पेड़, पहाड़
मत छीनो जीव-जंतु का आहार,
जब जंगल ही विलुप्त हो जायेंगे,
तब ह
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