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मुझे शब्दों को कविताओं में,
पिरोना अच्छा लगता है,
अपने दिल के अहसासो को,
पन्नों पर उतारना अच्छा लगता है,
मैं क्यों किसी और के लिए गीत लिखूं,
जब मुझे खुद के लिए,
गीत लिखना अच्छा लगता है।
मेरे अंतमुर्खी मन को,
कहने से ज्यादा,सुनना अच्छा लगता है,
मुझे जमाने से कोई सरोकार नहीं,
मुझे खुद से प्यार करना अच्छा लगता है,
मैं क्यों भीड़ का हिस्सा बनूं,
जब मुझे अकेले में,
खुद के लिए निकरना अच्छा लगता है।
मुझे नये रिश्ते बनाने का शौक नहीं,
मुझे पुराना रिश्ता ही बहुत अच्छा लगता हैं,
फुर्सत के कुछ अनमोल क्षणों में,
तेरे साथ वक़्त गुजारना अच्छा लगता है,
मैं क्यों अपनी भावनाओं को छिपाऊं,
सजन, तुझ से कुछ मांगने से पहले,
मेरा , तेरे लिए समर्पण अच्छा लगता है।
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