पार समन्दर साहिल तक
पानी में बहकर जाना था।
कांटो सी लहरों पर चलकर ,
दरिया में होकर जाना था।
मीलों की दूरी तय करके ,
साहिल तक उसको जाना था।
फिर झूम कर आया ,
वो सावन था। ......
पानी में बहाकर उसको,
दरिया तक लेकर आया था।
झूम उठीं वो दरिया में,
साहिल अब उसको मिल जाता।
पर डूब गई वो दरिया में,
क्योंकि काग़ज़ की वो कस्ती थी।।
__रश्मि गंगवार
बरेली(उत्तर प्रदेश)
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