
Share0 Bookmarks 201 Reads0 Likes
वो साहिल…. , किनारा और वो इश्क़ की बस्ती,
सब कुछ क़रीब था,
उफ़.. ये फितरत यकीन कर लेने की,
इस दस्त में समंदर भर लेने की,
सिर्फ और सिर्फ यादें ही समेट पाया
एक बूंद का कतरा भी न पाया,
वो अजीब सी दर्द की लकीर …खिंच गयी दिल पे,
वो तूफ़ान, वो सेहरा, और वक़्ते मरहम भी ना भर पाया.
"Rashid Ali Ghazipuri"
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments