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उरूजे इश्क़ में निजाते ए ग़म भला मिले कैसे
बस के बेचैनी है मुसलसल, भला ये जाए कैसे
ख़ुशी और ग़म बस एक सिम्त ही जारी है
खौफ भी है, मौत भी है,
और मिलने की खुशी तारी है
अपना किरदार भी कहां शफ़्फ़ाफ़
बस उन्हीं की इना
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