तड़प ये रूह की
क़ल्ब भी सिहर उठे
अब भला ये राग कैसा
जो हर दिल जल उठे,
जिस्मो की ये दुनिया
जिसमें सारी रूहें उलझी,
बस बेबस ही हैं वो
सिर्फ तड़पती और सिसकती,
निज़ात
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