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ज़ुस्तज़ु, तलाशे इश्क, ख्वाहिसे भला अब क्यूँ
मरहलों के भी मरहलें अब तो पार हुए…
मंज़िलों में कोई दम नहीं वो सब अब तो बेकार हुए
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ज़ुस्तज़ु, तलाशे इश्क, ख्वाहिसे भला अब क्यूँ
मरहलों के भी मरहलें अब तो पार हुए…
मंज़िलों में कोई दम नहीं वो सब अब तो बेकार हुए
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