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सियाह रूहें रौशनी की तलब लिए फिरती हैं,
बस यूँ ही ये नहीं फिरती हैं
हैं लिपटी स्याह से भी स्याह जिस्मों की परतों में,<
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बस यूँ ही ये नहीं फिरती हैं
हैं लिपटी स्याह से भी स्याह जिस्मों की परतों में,<
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