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इन किनारों की अब लहर बन जाने की चाहत कैसी
मौज़ बन उनपे पसर जाने की चाहत कैसी,
ताज़्ज़ुब हुआ समंदर को भी
की इनमे ये हिम्मत कैसी,
फितरत नहीं है इनकी लहरों जैसी
फिर जगाई ये हिम्मत कैसी…
"Rashid Ali Ghazipuri "
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