वफ़ा की चाहत ,
पर मैं बेरंग सा हूँ
तेरे लिए प्रिये मैं मलंग सा हूँ
बस भटकता ही रहता हूँ
तेरी ही गलियों में
न कोई ड़ोर नहीं कोई आसमा
फ
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