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बस थोड़ा इंतज़ार ए दिल
फिर तेरा कोई वजूद न होगा,
न दिल होगा न ख़लिस होगी
और होगा न कोई इंतज़ार,
तेरा साथ तो बस यहीं तक है
तेरी हद बस यहीं तक है,
उससे आगे न हो पायेगा तेरा परवाज़
इसलिए बस अब सुनता हूँ खुद की आवाज़
जो अंदर है जो अंतर्मन है
भला दुनिया को इससे क्या काम
वही है जो शुरू भी है और आखिरी भी
वही अब मेरी मंज़िल भी,
बस ये वक़्त फिर से गुज़र जाए
फिर तो मंज़िल की भी मंज़िल करीब आये.
“rashid ali ghazipuri”
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