स्त्री's image
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वो अंदरुनी पीड़ा जिसकी कोई ध्वनि नहीं

दूसरों के लिए समर्पण जिसकी कोई माप नहीं

गर कभी बोलना चाहूं तो कोई ताल नहीं 

हाथों में जकड़े जंजीर ही सही

अपनों में सिमटी ज़िन्दगी ही सही

मैं और मेरी तनहाई ही सही

एक बीज एक सपना दोनों को साथ बोया

कब्र से निकाल मैंने अपना जान डाला

पाला जब तक जिंदा स्वांस थी

अंधियारे में गूंजती लोगो की बात थी

बर्फिली रिश्तों का बोझ पहाड़ सा था

शिखर में छिपे आशुओं का समंदर भी था

वायु में बीते कल की परछाई

तानों में न थी कोई अच्छाई

टूटा तारा और सपने भी

कैद उम्मीदें और अपने भी

सुख गईं उसकी जड़ , लटे भी मुरझा सी गई

बिन चैन वो बेचैन , आत्मविश्वास ठंडा सी गई

लेकिन

मौसम भी बदलते हैं वायु फिर से तीव्र होगी

नया मिजाज़ होगा नए ख़्वाब भी

 निडर पथ होगा निडर हौसला भी

मुझे खुद रास्ता बनाना होगा

उन सपनों को अब उड़ान डालना होगा

हां आंधी के साथ तूफान भी होगा 

पग पग छूट जाने का डर भी होगा

अब मुझे छिपी रौशनी बनना है

काटों में भी गुलाब बनना है

सारी बाधाओं को जला भस्म करना है

परिवर्तन का दूसरा मिसाल बनना है

क्योंकि अब मुझे एक स्त्री बनना है

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