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प्रेम की पींग बढ़ाओ जरा धीरे धीरे
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प्रेम की पींग बढ़ाओ जरा धीरे धीरे।
ये डोरी न टूटे बढ़ाओ जरा धीरे धीरे।।
रूठ जाऊं अगर तुमसे जिंदगी में।
आकर मुझे मनाओ जरा धीरे धीरे।।
पढ़ाती रहती हो दिन रात तुम मुझको।
अब मुझे पढ़ाओ तुम जरा धीरे धीरे।।
मनाया है तुमने जिंदगी भर मुझको।
बुढ़ापा आ गया है,मनाओ जरा धीरे धीरे।।
मिट गया सब कुछ रहा न कुछ अब बाकी।
मेहरबानी करो कुछ,मिटाओ जरा धीरे धीरे।।
आ चुकी है बाढ़ रस्तोगी की प्रेम गंगा में।
प्रेम की नाव अब चलाओ अब धीरे धीरे।।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम
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