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नर्मदा के जितने कंकर, उतने सब शंकर

Raksha PandyaRaksha Pandya February 9, 2022
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माँ नर्मदा!
कितना आनंद और सुख देता है न यह नाम! अद्भुत, अमृतमयी व सौंदर्य से परिपूर्ण माँ नर्मदा का ऐश्वर्य है ही ऐसा कि मात्र उनका नाम लेते ही हृदय में आनन्द की तरंगे उठने लगती है, और मन प्रसन्नता से हिल्लोरे लेने लगता है।
कलियुग की 'गंगा' कहलाने वाली सरिता स्वरूपा माँ नर्मदा युगों-युगों से इस पृथ्वी पर निर्बाध गति से बह रही है और तो और इस सृष्टि के अंत तक भी इसी तरह बहती रहेगी। क्योंकि भगवान शिव ने नर्मदा को वरदान जो दिया है 'अजर अमर' रहने का। इसलिए कहा जाता है- 'प्रलयेषु न मृता सा नर्मदा'।
माँ नर्मदा हमेशा से अपना एक अलग पौराणिक एवं धार्मिक महत्व रखती आयी है। नर्मदा ही एकमात्र ऐसी नदी है जिस पर पुराण लिखे गए हैं, अन्य नदियों पर कोई पुराण उपलब्ध नहीं है।
रेवाखण्ड में कहा गया है कि- 
रेवायां स्नानदानादि जपहोमार्चनादिकम्।
यः कुर्यान्मनुजः श्रेष्ठः सोsश्मेधफलं लभेत्।।
स्मरणाज्जन्मजं पापं दर्शनेन त्रिजन्मजम्।
स्नानाज्जन्मसहस्त्राख्यमं हन्ति रेवा कलौ युगे।।
अर्थात - कलियुग में माँ नर्मदा के मात्र स्मरण से जन्मभर के पाप, दर्शन से तीन जन्म के और स्नान करने से हजार जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं। स्कंद पुराण में कहा गया है कि - "कलियुग के पाँच हजार वर्ष व्यतीत होने पर गंगाजी का समस्त माहात्म्य नर्मदा में सम्मिलित हो जाएगा।"
नर्मदा के तटवर्ती वनों मे मार्कंडेय, कपिल, भृगु , जमदग्नि जैसे कई ऋषियों के आश्रम रहे। इन ऋषियों का कहना था कि तपस्या तो बस नर्मदा तट पर ही करनी चाहिए। इन्हीं ऋषियों में से एक ने नर्मदा का नाम रखा - 'रेवा', 'रेव्' यानी 'कूदना'। चट्टानों से कूद-फाँद कर प्रवाहित होती इस अलबेली नदी का नाम 'रेवा' तो होना ही था। एक अन्य ऋषि ने नाम रखा 'नर्मदा', 'नर्म' यानी 'आनंद'। और आज के समय में यही आनंददायी नाम 'नर्मदा' अधिक प्रचलित है।
नर्मदा, भगवान शिव की 'इला' नामक कला है। शिव शंकर ने नर्मदा को पृथ्वी पर अवतरित करते समय यह कहा था कि - 'मे कला इति' यानी 'यह मेरी कला है'। अतः नर्मदा का नाम 'मेकला' पड़ा। शिव ने कहा - "सरिताएं बहुत सी है, तीर्थ भी हजारों है, परन्तु मुनिश्वरों! रेवा की बराबरी कोई नहीं कर सकता।"
स्कंद रेवाखण्ड के चतुर्थ अध्याय में वर्णित है कि - "लोगों के हित हेतु किसी समय माँ भवानी सहित शंकरजी ने काफी विशाल तप किया था। उस समय तप करते हुए महादेव के दिव्यदेह से पसीना बहा और यह पसीना अत्यधिक मात्रा में पर्वत के शिखर के ऊपर बहने लगा। उसी से पुण्यशालिनी माँ नर्मदा प्रकटी।"
नर्मदा में पाए जाने वाले पत्थर-कंकर का भी भक्तगण बड़ी ही श्रद्धा के साथ पूजन-अभिषेक करते हैं। क्योंकि शास्त्रों में कहा गया है कि, 'नर्मदा के जितने कंकर, उतने सब शंकर'। नर्मदाजी के पूजन-अभिषेक के साथ-साथ उनकी परिक्रमा भी अपना एक विशेष महत्व रखती है। नर्मदा विश्व की अकेली ऐसी नदी है जिसकी विधिवत परिक्रमा की जाती है। हजारों भक्तगण माँ नर्मदा की 1680

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