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कहते हैं, जब यह सृष्टि निर्मित हुई,
ईश्वर ने प्रत्येक जीव-जंतु, व मानव को एक समान आयु दी।
परन्तु, उसी समय ईश्वर से सब पक्षी बोले, और बोले सभी जानवर,
हे भगवन!
दीजिए मनुष्य को थोड़ा और जीवन, हम सभी की कुछ उम्र घटाकर।
भले, हमारी आयु से आप बीस-बीस साल ले लीजिए,
किंतु मानव को वरदान में शतायु का वरदान दे दीजिए।
तब बोले ईश्वर, हे प्राणी! तुम सभी बड़े महादानी,
भले ही, धरती पर तुम मूक-प्राणी बनकर जाओगे,
परन्तु, मानव के जीवन को तुम ही सफल बनाओगे।
मानव को तो मैं शत आयु का वर देता हूँ,
किंतु साथ ही तुम सभी को भी मैं एक वर देता हूँ।
जब पृथ्वी पर मनुष्य तुम्हें अपने भोजन में से
एक निवाला खिलाएंगे,
तभी वह इस लोक में पुण्य के भागी कहलाएंगे।
हे मानव! तू भी इन प्राणियों की मूक ध्वनि सुनना,
यदि ये न कह पाए, तो तू इनके पेट की क्षुधा समझना,
प्रतिदिन गाय-कुत्ते को रोटी, तो मछली को आटे की गोली खिलाना,
चींटी को आटा, तो चील को बड़े-पकौड़ी खिलाना।
अंत में, तेरे इन्हीं सत्कर्मों का सारा हिसाब यहाँ जुड़ेगा,
जो मृत्युलोक से स्वर्ग तक की तेरी यात्रा सुगम करेगा।
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