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कितना बेवक़्त है ये वक़्त, कमबख्त कटता ही नहीं।
ये खुद से मिलने का सबब है, हाथ से हाथ मिलाने का नहीं।
साहिब ये इंसानी फितरत भी अजीब है,
कल तक कतारों में ठूंसे जाते थे, आज पलँग पर फैले हैं,
मग़र एहसान फरामोशी देखें हुज़ूर की,
कल भी गुनाहगार नसीब था, आज भी गुनाहगार नसीब है।
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