
Share0 Bookmarks 55 Reads0 Likes
कितना बेवक़्त है ये वक़्त, कमबख्त कटता ही नहीं।
ये खुद से मिलने का सबब है, हाथ से हाथ मिलाने का नहीं।
साहिब ये इंसानी फितरत भी अजीब है,
कल तक कतारों में ठूंसे जाते थे, आज पलँग पर फैले हैं,
मग़र एहसान फरामोशी देखें हुज़ूर की,
कल भी गुनाहगार नसीब था, आज भी गुनाहगार नसीब है।
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments