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तिलक स्नेह का धारण किए विचरता था संसार में,
रौंदता चलता था ज्यौं प्रस्तर और पाषाण को,
पाता था निज गात्र में ऊर्जा के विमल प्रभाव को,
पालता था नव सुगंधि हर क्षण अपने ध्राण में
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तिलक स्नेह का धारण किए विचरता था संसार में,
रौंदता चलता था ज्यौं प्रस्तर और पाषाण को,
पाता था निज गात्र में ऊर्जा के विमल प्रभाव को,
पालता था नव सुगंधि हर क्षण अपने ध्राण में
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